आसन सिद्धि विधान-2
- Rajeev Sharma
- Dec 22, 2019
- 4 min read
Updated: 5 days ago
बीजोक्त तन्त्रम् – विरूपाक्ष कल्प तंत्र
मैंने स्वयं जिस आसन को सिद्ध किया है, उसे करीब 7-8 वर्ष हो चुके हैं । इतने समय बाद भी उस आसन के तेज में कोई कमी नहीं आयी है । दरअसल, ऐसे सिद्ध आसन पर हम जब भी बैठकर साधनाओं को संपन्न करते हैं तो इस आसन की ऊर्जा में बढ़ोत्तरी ही होती है ।
दरअसल होता क्या है कि हम चाहे जिस भी आसन पर बैठकर साधना करें, उसमें हमारे मंत्र जप की ऊर्जा की शक्ति आयेगी ही आयेगी । लेकिन चूंकि सामान्य आसन मंत्रों से आबद्ध नहीं होते हैं तो उनकी ऊर्जा का क्षय समय के साथ होता रहता है । अगर आप लगातार साधना करते रहते हैं, तब तो कोई बात नहीं, आपका आसन चैतन्य ही रहेगा पर क्या हो, जब आप लगातार साधना नहीं कर पाते हैं तो आपका आसन भी समय के साथ डिस्चार्ज हो जाएगा । इसी वजह से आसन को सिद्ध करना आवश्यक हो जाता है कि, कम से कम एक ऊर्जा का स्तर उस आसन में हमेशा बना रहे । हम चाहे जब भी बैठकर उस पर साधना करें, हमारी कमर स्वतः ही सीधी रहे, शरीर टूटे न और साधना भी निर्विघ्न संपन्न हो ।
आसन को सिद्ध करने की विधि
इसके लिए आप एक नया रंगबिरंगा ऊनी कम्बल ले सकते हैं और इसे सिद्ध करने के पश्चात इसके ऊपर आप अपने वांछित रंग का रेशमी या ऊनी वस्त्र भी बिछा सकते हैं |

मैथुन चक्र