आसन सिद्धि विधान-2

बीजोक्त तन्त्रम् – विरूपाक्ष कल्प तंत्र

मैंने स्वयं जिस आसन को सिद्ध किया है, उसे करीब 7-8 वर्ष हो चुके हैं । इतने समय बाद भी उस आसन के तेज में कोई कमी नहीं आयी है । दरअसल, ऐसे सिद्ध आसन पर हम जब भी बैठकर साधनाओं को संपन्न करते हैं तो इस आसन की ऊर्जा में बढ़ोत्तरी ही होती है ।

दरअसल होता क्या है कि हम चाहे जिस भी आसन पर बैठकर साधना करें, उसमें हमारे मंत्र जप की ऊर्जा की शक्ति आयेगी ही आयेगी । लेकिन चूंकि सामान्य आसन मंत्रों से आबद्ध नहीं होते हैं तो उनकी ऊर्जा का क्षय समय के साथ होता रहता है । अगर आप लगातार साधना करते रहते हैं, तब तो कोई बात नहीं, आपका आसन चैतन्य ही रहेगा पर क्या हो, जब आप लगातार साधना नहीं कर पाते हैं तो आपका आसन भी समय के साथ डिस्चार्ज हो जाएगा । इसी वजह से आसन को सिद्ध करना आवश्यक हो जाता है कि, कम से कम एक ऊर्जा का स्तर उस आसन में हमेशा बना रहे । हम चाहे जब भी बैठकर उस पर साधना करें, हमारी कमर स्वतः ही सीधी रहे, शरीर टूटे न और साधना भी निर्विघ्न संपन्न हो ।

आसन को सिद्ध करने की विधि

इसके लिए आप एक नया रंगबिरंगा ऊनी कम्बल ले सकते हैं और इसे सिद्ध करने के पश्चात इसके ऊपर आप अपने वांछित रंग का रेशमी या ऊनी वस्त्र भी बिछा सकते हैं |

मैथुन चक्र

मंगलवार की प्रातः पूर्ण स्नान कर लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर बैठकर भूमि पर तीन मैथुन चक्र का निर्माण क्रम से कुमकुम के द्वारा कर ले । १ और ३ चक्र छोटे होंगे और मध्य वाला आकार में थोडा बड़ा होगा । मध्य वाले चक्र के मध्य में बिंदु का अंकन किया जायेगा, बाकी के दोनों चक्र में ये अंकन नहीं होगा । मध्य वाले चक्र में आप उस कम्बल को मोड़कर रख दे और अपने बाएं तरफ वाले चक्र के मध्य में तिल के तेल का दीपक प्रज्वलित कर ले और, दाहिने तरफ वाले चक्र में गौघृत का दीपक प्रज्वलित कर ले। और हां, दोनों दीपक चार चार बत्तियों वाले होने चाहिए । अब गुरु पूजन और गणपति पूजन के पश्चात पंचोपचार विधि से उन दोनों दीपकों का भी पूजन करे, नैवेद्य की जगह कोई भी मौसमी फल अर्पित करें ।

इसके बाद उस कम्बल का पंचोपचार पूजन करें | तत्पश्चात कुमकुम मिले १०८-१०८ अक्षत को निम्न मंत्र क्रम से बोलते हुए उस कम्बल पर डालें –

ऐं (AING) ज्ञान शक्ति स्थापयामि नमः

ह्रीं (HREENG) इच्छाशक्ति स्थापयामि नमः

क्लीं (KLEENG) क्रियाशक्ति स्थापयामि नमः

तत्पश्चात निम्न ध्यान मंत्र का ७ बार उच्चारण करे और ध्यान के बाद जल के छींटे उस वस्त्र पर छिडके –

ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वं विष्णुना धृता त्वं च धारय माम देवी: पवित्रं कुरु च आसनं  ।।

ॐ सिद्धासनाय नमः ॐ कमलासनाय नमः ॐ सिद्ध सिद्धासनाय नमः

इसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए पुष्प मिश्रित अक्षत को उस कम्बल या वस्त्र पर ३२४ बार अर्पित करें –

।। ॐ ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं सप्तलोकं धात्रि अमुकं आसने सिद्धिं भू: देव्यै नमः ।।

OM HREENG KLEENG AING SHREEM SAPTLOKAM DHAATRI AMUKAM AASANE SIDDHIM BHUH DEVAYAI NAMAH ||

ये क्रम गुरूवार तक नित्य संपन्न करें । मात्र 3 दिन में ही आप इस सामान्य (किंतु दुर्लभ) प्रक्रिया के माध्यम से अपने आसन को सिद्ध कर सकते हैं । और 3 दिन की ये मेहनत आपके जीवन भर काम आयेगी ।

जहां पर अमुक लिखा हुआ है वहां अपना नाम उच्चारित करना है ।अंतिम दिवस क्रिया पूर्ण होने के बाद किसी भी देवी के मंदिर में कुछ दक्षिणा और भोजन सामग्री अर्पित कर दें तथा कुछ धन राशि जो आपके सामर्थ्यानुसार हो अपने गुरु के चरणों में अर्पित कर दें या गुरु धाम में भेज दें तथा सदगुरुदेव से इस क्रिया में पूर्ण सफलता का आशीर्वाद लें । अद्भुत बात ये है कि आप इस कम्बल को जब भी बिछाकर इस पर बैठेंगे तो ना सिर्फ सहजता का अनुभव करेंगे अपितु समय कैसे बीत जाएगा, आपको ज्ञात भी नहीं होगा।

दीर्घ कालीन साधना कहीं ज्यादा सरलता से ऐसे सिद्ध आसन पर संपन्न की जा सकती है और आप इसके तेज की जांच करवा कर देख सकते हैं, कि कितना अंतर है सामान्य आसन में और इस पद्धति से सिद्ध आसन में । आप ऐसे दो आसन सिद्ध कर लीजिए; एक आसन आप अपने गुरु के बैठने के निमित्त प्रयोग कर सकते हैं । आपको दो बातों का ध्यान रखना होगा –

१. इन आसनों को धोया नहीं जाता है ।

२. इन पर हमारे अतिरिक्त कोई और नहीं बैठ सकता है,अन्यथा उसकी मानसिक स्थिति व्यथित हो सकती है ।

अतः यदि किसी और के निमित्त आसन तैयार करना हो तो अमुक की जगह उसका नाम उच्चारित कर आसन सिद्ध करना होगा । स्वयं के अतिरिक्त जो हम गुरु सत्ता या सिद्धों के आवाहन हेतु जो आसन प्रयोग करेंगे, उसे सिद्ध करने के लिए अमुक की जगह ज्ञानशक्तिं का उच्चारण होगा।

ये हमारा सौभाग्य है कि हमें ये विधान उपलब्ध है,आवश्यकता है तो इन सूत्रों का साधना में प्रयोग करने की और साधना की सफलता प्राप्ति के मार्ग में जो बाधाएं आ रही है,उन्हें समाप्त कर उन पर विजय प्राप्त करने की ।

अस्तु ।


आसन सिद्धि के इस दुर्लभ विधान को आप PDF file में यहां पर डाउनलोड़ कर सकते हैं –


24 comments

  1. “इसके बाद उस कम्बल का पंचोपचार पूजन करें | तत्पश्चात कुमकुम मिले १०८-१०८ अक्षत को निम्न मंत्र क्रम से बोलते हुए उस कम्बल पर डालें”

    इसमें दर्शित 108 अक्षत को एक,दो,तीन ऐसे अलग अलग गिन के पहले मंत्र (aing ज्ञानशक्ति स्थापयामि नमः)के साथ डालना है? फिर दूसरे और तीसरे मंत्र को इस क्रम से 108 बार डालना है? कृपया मार्गदर्शन करें। मैं इस पॉइंट पे बहुत उलजन में हु।

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    • जी, बिलकुल गिनकर ही काम करना है। प्रत्येक मंत्र के लिए १०८ अक्षत (चावल के दाने जो टूटे हुए न हों) तैयार रखें और सदगुरुदेव द्वारा बताई हुई विधि से पूजन संपन्न करें।

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    • आसन सिद्धि के विधान को Pdf file के रुप में ब्लॉग पर अपलोड़ कर दिया गया है । अब आप इसे वहां से प्राप्त कर सकते हैं । 🙂

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  2. Jaigurudev.

    Asan agar dhoyenge nahi to kuch samay baad usme se durgandh aayegi. Ya ganda ho jaayega .

    Kya karna hai is case me.

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    • जब हमने अपने लिए आसन सिद्ध किया था, तबसे लेकर अब तक। करीब 10 वर्ष से अधिक का समय व्यतीत हो चुका है, हमको तो नहीं लगता कि इतने समय में भी इसमें कभी दुर्गंध आयी हो कभी। वैसे इस आसन को हिफाजत से रखना चाहिए, ऐसी जगह पर रखना चाहिए जहां ये गंदा न हो, धूल से बचाकर रखेंगे, नियमित रूप से प्रयोग करेंगे तो यह हमेशा चैतन्य रहेगा। इसको कभी धोने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
      बाकी, स्वयं के अनुभव से सीखते रहना चाहिए।

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      • जय सद्गुदेव भैया जी मेने आसन सिद्दी विधान शुरू किया मंगलवार से प्रारम्भ किया परन्तु गुरुवार को सुबह पंचक लग गई इससे मेरे विधान पर कोई गलत प्रभाव तो नही होगा न कृपया बताने का कस्ट करें।

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  3. Til la tel uplabdh na ho to koi bhi tel use kar sakte hai kya aur lal asan vashtra na ho to bhagwa dhoti guru chadar pahanke pile asan par baith sakte hai kya

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    • अवश्य कर सकते हैं। देशी घी का भी दीपक जला सकते हैं। कपड़े अपनी इच्छानुसार पहन सकते हैं

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  4. Rajeev ji ek questions hai aap se ki ,aap hamesha post par sadgurudev bol te hai sadgurudev ( nikhileswarand hai yaa guru Trimurti aap kisse bol te hai ) aur ek baat main suna hai ki guru Trimurti ne gurudev dr.nd shrimali ji ki diksha ke naam pe business chal rahe hai aur Jodhpur gurudham main bhi aisa ho raha hai,kya sachh hai ?, sadgurudev Dr nd shrimali ji jab shivir karte the tab bht saari gupt mantra bidhan batate the par guru Trimurti to koi mantra ki bidhan ,gopaniya kriya kuchh nahin bata rahe hai ?,kisi ke paas agar paisa nahin hoga to o kya diksha nahin le payega boliye ji ?

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    • प्रश्न महत्वपूर्ण है लेकिन इस विषय पर पहले ही ब्लॉग पर लिखा जा चुका है। आप सद्गुरु कृपा विशेषांक (https://bit.ly/Sadguru-Kripa) पोस्ट को ध्यान से पढ़ लीजिए। इससे आपको अवश्य मार्गदर्शन मिलेगा।

      रहा सवाल सदगुरुदेव उद्बोधन का – यहां उसका मतलब वही है जो आप सोच रहे हैं अर्थात परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी। ये बात अलग है कि वह स्वयं को किस स्वरुप में प्रकट करते हैं। वह गुरु हैं और किस ज्ञान को किस प्रकार प्रकट करते हैं, वही जानें, लेकिन आप उसको पहचान सकें और आत्मसात कर सकें, ये आपके ऊपर निर्भर करता है।

      कुछ और भी महत्वपूर्ण पोस्ट ब्लॉग पर मौजूद हैं, मेरी राय है कि आप समय निकालकर इन पोस्ट को अवश्य पढ़ें, इससे आपके बहुत से संशयों का निवारण हो सकता है।

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  5. आसन सिध्दि करने के लिए किसी भी प्रकार के वस्त्र का उपयोग कर सकते हैं

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    • आसन ऐसा होना चाहिए जो आपको आराम पहुंचाए। बाकी तो वस्त्र आप कोई भी प्रयोग कर सकते हैं

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  6. ऐं (AING) ज्ञान शक्ति स्थापयामि नमः

    ह्रीं (HREENG) इच्छाशक्ति स्थापयामि नमः

    क्लीं (KLEENG) क्रियाशक्ति स्थापयामि नमः

    इन तीनो मन्त्र में एक मंत्र बोलकर 108 चावल अर्पण करना है और फिर दूसरा मन्त्र फिर 108 चावल फिर तीसरा मन्त्र फिर 108 चावल अर्पण करने है यही करना है न भैया जी।

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      • भैया जी जैसे मेरे पास पुराना कम्बल एवं दीक्षा में समय एक आसन मिला था तो क्या उन को सिध्द कर सकते हैं क्या।

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      • अरे भाई, एक नया कंबल ले लीजिए। बच्चों वाले कंबल मिल जाते हैं बाजार में। छोटे भी होते हैं और हल्के भी। एक रंगबिरंगा कंबल ले लीजिए।

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  7. कम्बल था उसको में आसन के रूप में उपयोग करता था उसपर पीला कपड़ा ड़ालकर बैठता था तो कृपा करके मार्गदर्शन करे।

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