काल ज्ञान की एक अप्रतिम विधा है जिसे अष्टक वर्ग कहते हैं । आज से इस श्रृंखला पर भी कार्य शुरु हो रहा है । इस श्रृंखला का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि आज की तारीख में सामान्य जन भी ज्योतिष को एक ढकोसला मानने लग गये हैं । जबकि सच तो ये है कि ज्योतिष तो काल ज्ञान विधा का एक बिंदु मात्र है । और यह बिंदु भी स्वयं में अथाह समुद्र जितना विशाल है ।
भारतवर्ष में जितना शोध ज्योतिष के ऊपर हुआ है, दुनिया में शायद कहीं नहीं हुआ है । एक समय था जब ज्योतिष के बहुत अच्छे जानकार हमारे देश में मौजूद थे । आज भी हैं पर शायद दुनियादारी के भय से अब सामने आना बंद कर दिया है । हां, ये बात और है कि उनकी जगह ऐसे ज्योतिषियों ने ले ली है जो सतही ज्ञान और चमक-दमक से भरपूर हैं । श्रोताओं के हिसाब से भविष्यफल करते हैं और टीवी पर अपनी रेटिंग बढ़ाते रहते हैं ।
खैर, हमारा मकसद यहां किसी की आलोचना करना नहीं है । हमारा मकसद केवल सदगुरुदेव प्रदत्त ज्ञान को पूरी प्रामाणिकता के साथ सभी के साथ बांटना है । ताकि इस दुर्लभ और महत्वपूर्ण ज्ञान को आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखा जा सके ।
सदगुरुदेव ने ज्योतिष विधा पर ही 150 से ज्यादा ग्रंथ लिखे हैं । उसमें से जो ग्रंथ अष्टक वर्ग के ऊपर लिखा गया है, उसको समझना न सिर्फ आसान है बल्कि उसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति या साधक अपने संपूर्ण जीवन के गणित को मात्र 96 वर्गों से ही जान और समझ सकता है । ये इतना आसान है कि व्यक्ति अपने आने वाले 3- 4 वर्षों का गणित निकालकर उसके हिसाब से प्लानिंग कर सकता है ।
जब हमारे सामने ये प्रश्न आता है कि अगर हम इस काम को करते हैं तो भविष्य में क्या होगा । हालांकि होता वही है जो राम रचि राखा । पर अष्टक वर्ग ज्योतिष के माध्यम से आप इस बात को जान सकते हैं कि भविष्य ने आपके लिए कैसा समय रचा हुआ है । अगर निर्णय लेते समय या उससे पहले आप इस बात को जान सकें तब हो सकता है कि आप भविष्य भी बदल सकें । और अगर भविष्य न बदल पायें तो अपने निर्णय ही बदल दिये जाएं । भविष्य स्वयं ही बदल जाएगा ।
हालांकि ये सब इतना आसान नहीं है, पर मनुष्य को प्रयास अवश्य करना चाहिए । आखिर कर्म करने का अधिकार तो स्वयं ईश्वर ने ही मनुष्य को दिया है ।
आखिर विधाता ने ज्योतिष की रचना सिर्फ इसलिए तो नहीं की होगी कि हम सिर्फ भविष्य जानकर ही रह जाएं । अगर विधाता ने इस विधा की रचना की है तो अवश्य ही उसके पीछे गूढ़ चिंतन रहा होगा कि जब कभी मनुष्य अपने भविष्य तो पढ़ पाने में सक्षम हो जाएगा तो अपने कर्मों के माध्यम से, अपनी साधना और तप के माध्यम से वह (सकारात्मक रुप से) अपने भविष्य को भी तय कर पाने में सक्षम हो सकेगा ।
एक उदाहरण के माध्यम से समझते हैं कि आखिर ये अष्टक वर्ग दिखता कैसा है और इसके 96 वर्गों से क्या अभिप्राय है?
उदाहरण अष्टक वर्ग
ये एक जातक की जन्म कुण्डली के माध्यम से बनाया गया अष्टक वर्ग है । चूंकि इसमें सभी ग्रहों (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि) और लग्न के अष्टक वर्गों की गणना सभी 12 राशियों के सापेक्ष की गयी है, इसलिए इसे सर्वाष्टक वर्ग कहते हैं ।
मैंने कुछ विद्वानों के बनाये हुये अष्टक वर्ग देखे हैं । उन्होंने तो बाकायदा Excel sheet का ही सॉफ्टवेअर बना दिया था । इतनी गहन गणना उन्होंने प्रोग्रामिंग के माध्यम से की थी । लेकिन वो कभी भी सटीक जवाब हासिल कर पाने में सक्षम नहीं हो पाये होंगे, हालांकि इसका मैं सिर्फ अनुमान ही लगा सकता हूं पर ये अनुमान गलत नहीं है । क्योंकि आज की तारीख में उनके अष्टक वर्ग के सॉफ्टवेअर को कोई नहीं जानता है । इतनी मेहनत व्यर्थ चली गयी क्योंकि उन्होंने 7 ग्रहों के अलावा लग्न का अष्टक वर्ग नहीं बनाया ।
उनकी गणना में लग्नाष्टक वर्ग शामिल ही नहीं था ।
सदगुरुदेव ने समझाया है कि ये अष्टक वर्ग है और इसकी गणना के लिए सात ग्रहों के साथ-साथ लग्न का भी अष्टक वर्ग बनाना आवश्यक होता है नहीं तो, इसका नाम अष्टक वर्ग रखा ही क्यूं जाता ।
अगर आप ध्यान से देखें तो इसमें प्रत्येक राशि और प्रत्येक ग्रह के अष्टक वर्ग के सापेक्ष में कुछ अंक लिखे हुये हैं । ये अंक शुभ रेखायें होती हैं । प्रत्येक वर्ग में केवल एक ही अंक आ सकता है जिसका मान 0 से 8 के बीच ही हो सकता है । ये गणना कैसी की जाती है, उसके बारे में ही ये श्रंखला पोस्ट की जा रही है । हम लोग धीरे - धीरे इस गणना को करना सीखेंगे ताकि यह ज्ञान हमारे आने वाली पीढ़ियों के भी काम आ सके ।
वैसे तो मैंने एक Excel Sheet भी तैयार कर दी है । आप तो बस अपने जन्मांग चक्र से ग्रहों की स्थिति इसमें भर दीजिए, ये फॉर्मूलों पर आधारित Excel Sheet है, सारी गणना आपके लिए स्वयं कर देगी ।
लेकिन महत्वपूर्ण तथ्य ये है कि आखिर ये गणना की कैसे जाती है । कैसे हम स्वयं ही इस गणना को कर सकते हैं । आने वाली पीढ़ियां अगर हमसे कुछ सवाल करती हैं तो हमारे पास उनके जवाब होने चाहिए । और इससे भी बढ़कर है कि कैसे हम फलादेश करें । मात्र एक सर्वाष्टक वर्ग के माध्यम से हम कैसे फलादेश कर सकते हैं, इसको समझना बिलकुल भी कठिन नहीं है । पर समझना तो आवश्यक ही है मेरे भाई ।
हम श्रृंखला आरंभ करें, उससे पहले एक Exercise कर लेना ठीक रहेगा । मैं चाहता हूं कि कुछ लोग सामने आकर अपने अष्टक वर्ग बनवायें । हम उनके अष्टक वर्ग बनाकर कुछ चुनिंदा (लेकिन random) अष्टक वर्ग को यहीं ब्लॉग पर पोस्ट करेंगे और उनके माध्यम से ही सारी गणनायें करना सिखायेंगे । यह सारी कवायद निःशुल्क रहेगी । ये किसी प्रकार का प्रचार नहीं हैं बल्कि ये समाज के सामने किसी विद्या की प्रामाणिकता की बात है । जब सभी के सामने किसी व्यक्ति के तथ्य रखे जायेंगे तो सिर्फ वही व्यक्ति इसके बारे में बता सकता है कि ये सच है या नहीं । आप इसे किसी दवा के ट्रायल जैसा ही समझ लीजिए । यही तथ्य इस बात का संकेत होते हैं कि क्यों इस विद्या को सीखा जाए ।
कोई भी व्यक्ति अपनी निम्नलिखित जानकारी हमें यहीं टिप्पड़ी अथवा व्यक्तिगत WhatsApp #8979480617 पर भेज कर अपना अष्टक वर्ग तैयार करवा सकता है । हम यहां जो भी अष्टक वर्ग पोस्ट करेंगे वह, उस व्यक्ति की व्यक्तिगत सहमति के बाद ही करेंगे । अगर आप चाहेंगे तो उसे गोपनीय भी रखा जाएगा -
नाम
जन्म तारीख
जन्म समय
जन्म स्थान (अगर किसी गांव में हुआ हो तो निकटतम बड़े शहर का नाम)
कोई भी जानकारी अगर सही से पता न हो तो, कृपया यहां पोस्ट न करें । क्योंकि जरा सी त्रुटि होने पर सारी गणना गलत हो जाती है ।
मैं प्रयास करूंगा कि सभी इच्छुक लोगों का अष्टक वर्ग बनाकर भेज दिया जाए । मैं ये भी प्रयास करूंगा कि वर्तमान के कम से कम 3 या 5 सालों का वर्षफल उसमें अलग से दे दिया जाए । क्योंकि सर्वाष्टक वर्ग पूरे जीवन के लिए होता है, लेकिन प्रत्येक वर्ष का वर्षफल अलग बनाना होता है ताकि समय को बारीकी से पहचाना जा सके ।
ध्यान रखिये, ये अष्टक वर्ग, काल ज्ञान की विधा है और पूरी तरह से गणित पर आधारित है । इसके सभी आयामों को किसी भी कसौटी पर परखा जा सकता है । इससे आपको अपने भूत, वर्तमान और भविष्य के बारे में सटीक अनुमान लगाने में मदद मिलेगी । भूतकाल गुजर चुका है तो आप शायद इस बात को समझ पायें कि कोई भी घटना क्यों हुयी थी और इसका आपके आने वाले भविष्य पर क्या फर्क पड़ सकता है ।
(क्रमशः...)
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