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September 16, 2019

इस ब्लॉग की शुरुआत करने के लिये विगत कई महीनों से विचार कर रहा था । पर समयभाव और फिर, मन में एक संशय भी बना रहता था कि जो कुछ अनुभव पिछले 20 वर्षों में प्राप्त किया है, इतना कुछ क्या सिर्फ एक ब्लॉग के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है?

पर ईश्वरीय प्रेरणा, अपना कार्य करती रहती है ।

पिछले कुछ दिनों से अलग - अलग लोगों से विचार विमर्श के बाद इस नतीजे पर पहुंचा कि अब समय आ गया है कि हमने जो कुछ भी, आज तक, अपने पूज्य सदगुरुदेव डा. नारायण दत्त श्रीमाली जी से प्राप्त किया है, वह अब इस ब्लॉग के माध्यम से समाज के सामने रखा जाये । आध्यात्मिक जगत में ऐसा करने वाले हम कोई पहले व्यक्ति नहीं हैं और, न ही आखिरी । पर समय - समय पर सबको अपना योगदान समाज में अवश्य देना चाहिए और इसी विचार का परिणाम है ये ब्लॉग ।

 

यहां ध्यान रखने योग्य बात ये हैं कि इस ब्लॉग पर जो भी सामग्री, ऑडिओ या वीडिओ पोस्ट किया जा रहा है या भविष्य में किया जाएगा, वह सब प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से परमपूज्य सदगुरुदेव ड़ा नारायण दत्त श्रीमाली जी द्वारा उनके सन्यासी या गृहस्थ शिष्यों को प्रदान किया हुआ ही ज्ञान है । सदगुरुदेव के शिष्यों में फक्कड़ साधु भी रहे हैं, सन्यासी, अघोरी रहे हैं तो गृहस्थ शिष्यों पर भी उनकी पूरी कृपा बरसी ही है ।

जो भी व्यक्ति आध्यात्म से जुड़े हैं, उन्होंने पूज्य सदगुरुदेव की कृपा को कभी न कभी जीवन में अवश्य महसूस किया है और ये भी जाना है कि पूज्य सदगुरुदेव ही उनकी अंतर्यात्रा के साक्षी रहे हैं । जिन्होंने पूर्णता प्राप्त की, वे लोग वापस समाज में आकर गुरु - शिष्य परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं और हर उस साधक या शिष्य को मार्ग दिखा रहे हैं, जिनको उसकी आवश्यकता है ।

इसी क्रम में हमारा भी प्रयास है कि हम पूज्य सदगुरुदेव के इस दुर्लभ ज्ञान से उन सभी जिज्ञासुओं का परिचय करवायें जो अभी तक या तो अनभिज्ञ रहे हैं या उचित मार्गदर्शन के अभाव में अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पाये हैं ।

 

इस ब्लॉग पर जो भी सामग्री पोस्ट की जाती है, वह अपने आप में पूर्ण प्रामाणिक होती है और लेखक द्वारा स्वअनुभूत होती है । हालांकि लेखक का नाम तभी प्रकाशित किया जाता है जब उनकी तरफ से सहमति होती है । कारण कि, आध्यात्मिक क्षेत्र के साधक किसी भी प्रकार के प्रचार से दूर ही रहते हैं । वे तो बस, अपने में मगन और अपनी अंतर्यात्रा की पूर्णता में लगे रहते हैं । ऐसे में, उनसे संबंधित जानकारी केवल उनकी अपनी सहमति से ही दी जा सकती है ।

 

कुछ महानुभाव ऐसे भी हो सकते हैं जो इन सामग्री की प्रामाणिकता पर उंगली उठा सकते हैं । उनको अधिकार है ऐसा करने का । हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते हैं । मर्यादा में रहकर किया हुआ कोई भी सामाजिक शात्रार्थ हमें मंजूर है किंतु ऋषि - मुनियों के इस प्राचीन ज्ञान के अपमान की भावना से किया हुआ कोई भी प्रयास मंजूर नहीं होगा ।

तर्क करिये, कुतर्क नहीं । जिज्ञासु बनिए, अंधविश्वासी नहीं । और उस सबसे भी परे, एक साधक बनिए । अगर ईश्वर कृपा रही तो आप एक शिष्य भी बन सकते हैं ।

 

और अगर गुरु कृपा प्राप्त हो गयी तो ... स्वयं की भी प्राप्ति कर सकते हैं । यही तो आत्म साक्षात्कार है :-)

 

अस्तु ।

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