कार्य सिद्धि से तात्पर्य होता है कि जब हम किसी कार्य को करने की इच्छा रखते हैं, उसमें हमें सफलता प्राप्त होना । अब बात चाहे किसी परीक्षा में सफलता की हो, किसी नौकरी की प्राप्ति की बात हो, समाज में यश और सम्मान प्राप्त करने की हो या फिर चाहे किसी अधिकारी से मतभेदों को दूर करने की हो, वहां हम कार्य सिद्धि शब्द का प्रयोग करते हैं ।
आगे बढ़ने से पहले यहां ये स्पष्ट करना जरूरी है कि जो भी प्रयोग या मंत्र यहां पर पोस्ट किये जाते हैं, वो पूरी तरह अनुभवगम्य होते हैं, प्रामाणिक होते हैं और पूरी तरह से परखे हुये होते हैं । अतः प्रयोग या मंत्र की प्रामाणिकता पर संदेह करना व्यर्थ होता है । अलबत्ता ये बात और है कि किसी को किसी साधना में तुरंत सफलता प्राप्त होती है तो किसी को समय लगता है । उसके मूल में साधक का अपना ऊर्जा स्तर होता है ।
जो लोग पहले से ही किसी न किसी साधना में अभ्यासरत होते हैं, उनको इन साधनाओं को आत्मसात करने में समय कम लगता है । और जो लोग पहले कभी भी साधना नहीं किये हैं, उनको अपना ऊर्जा स्तर बढ़ाने में समय लग सकता है । दोनों ही परिस्थितियों में आपके गुरु ही मार्गदर्शन करते हैं । और गुरु के प्रति समर्पण ही आपकी कार्य सिद्धि में मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है ।
साधना में सफलता गुरु के प्रति समर्पण पर निर्भर करती है । अगर हमारा समर्पण गुरु के प्रति नहीं है तो साधना में सफलता की बात करना ही बेमानी है । और, समर्पण करने के लिए आपको कहीं पर जाकर अपना माथा पटकने की जरुरत नहीं है । समर्पण तो ह्रदय से होता है । समर्पण तो प्रेम का ही दूसरा स्वरुप है । समर्पण तो एक ऐसी क्रिया है जिसमें हम अपने गुरु या इष्ट से एकाकार हो जाते हैं, अपने गुरु की इच्छा को ही अपने लिए आदेश मानते हैं और जो भी कार्य हम करते हैं वह, हमारे लिए गुरुसेवा ही बन जाती है । अब अगर आप नौकरी कर रहे हैं तो ये नौकरी ही आपके लिए गुरुसेवा है, अगर आप बिजनेस कर रहे हैं तो ये बिजनेस ही आपके लिए गुरुसेवा है । सीधा तात्पर्य ये है कि जहां स्वार्थ का भाव खत्म हो जाता है वहां सेवा का भाव पूर्ण रुप से स्पष्ट हो जाता है ।
और सेवा भाव से की गयी कोई भी क्रिया समर्पण ही कहलाती है । और हमारा ये समर्पण हमारे गुरु के प्रति होता है, उस परमात्मा के प्रति होता है । यहां हमारी आसक्ति खत्म होने लग जाती है और साधना की क्रिया भी उस गुरु से जुड़ने की क्रिया बन जाती है ।
और जब समर्पण होता है, तब ही इस बात की समझ आती है कि जब भी हम अपने गुरु का चिंतन करते हैं तो आंखों से आंसू क्यों बहने लग जाते हैं । आंखों से आंसू बहने लगते हैं तब ही पता चलता है कि प्रेम क्या होता है, समर्पण क्या होता है और गुरु से जुड़ाव क्या होता है ।
अगर आपको अपने जीवन में जीवित जाग्रत गुरु मिल जायें तो आपका सौभाग्य है । और उसमें भी सदगुरु मिल जायें तो सौभाग्य की उपमा की ही नहीं जा सकती है । अगर मिलें तो फिर पैर पकड़ लेना उनके । अगर न मिलें तब भी कोई बात नहीं, क्योंकि गुरु तो अंदर ही बैठे हैं । वैसे भी आप उनको नहीं खोज सकते, गुरु ही आपको खोजते हैं ।
अगर कोई सद्गुरु न मिले तब भी अपने ह्रदय में बैठे सद्गुरु से ही मार्गदर्शन लीजिए, उनके प्रति ही समर्पण कीजिए । अगर इतना भी नहीं कर सकते तो राम, कृष्ण, बुध, महावीर, शिव..... किसी को भी गुरु रुप में धारण कीजिए, अपना समर्पण कीजिए और साधना कीजिए ।
तब जाकर साधना में सफलता मिलने की बात कीजिए । अगर इतना नहीं कर सकते तो बाकी सब भी व्यर्थ ही है ।
अब बात करते हैं कार्य सिद्धि की तो किसी भी कार्य में सफलता तब तक नहीं मिल सकती जब तक कि काल का सहयोग न प्राप्त हो । आपने बहुत बार सुना होगा कि मेहनत तो बहुत की पर शायद समय ठीक नहीं चल रहा है । बहुधा ऐसा होता है कि हम बहुत मेहनत करते हैं पर प्रारब्ध की वजह से या मेहनत की कमी से, या फिर कहिये कि आत्मविश्वास की कमी से हम बहुत से ऐसे कार्यों में भी असफलता प्राप्त करतेे हैं जहां हमें सफलता की पूरी उम्मीद थी । फैक्टर तो बहुत सारे होते हैं पर मुख्य रुप से दो ही चीजें हमारे भाग्य को दुर्भाग्य में बदल देती हैं ।
पहली चीज है चैतन्यता की कमी और दूसरा है काल शक्तियों का सहयोग न मिलना ।
तो अगर जीवन में सफलता प्राप्त करनी है तो हमें अपनी चैतन्यता के स्तर को ऊपर उठाना ही पड़ेगा । चैतन्य संस्कार मंत्र पहले ही पोस्ट किये जा चुके हैं इसलिए यहां पोस्ट करने का कोई औचित्य नहीं है, पर लिंक अवश्य दी जा रही है ताकि एक बार क्लिक करके ही आप उस पोस्ट तक पहुंच सकें ।
रही बात काल शक्तियों के सहयोग की तो उसके लिए माता महाकाली की साधना अत्यंत आवश्यक है । माता महाकाली, काल की देवी हैं और काल को दिशा भी वही दिखाती हैं । अगर जीवन में माता महाकाली का आशीर्वाद प्राप्त हो सके तो किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त होती ही है। हम समय - समय पर अलग - अलग साधना विधियों को पोस्ट करेंगे पर यहां पर एक महत्वपूर्ण साधना पोस्ट की जा रही है जिसमें समय भी कम लगता है और ये जीवन को सहज और सरल बनाने में भी सहयोगी सिद्ध होती है ।
माता प्रत्यंगिरा, माता महाकाली का ही एक स्वरूप हैं । उनकी साधना करने से काल शक्तियों का सहयोग जीवन में प्राप्त होता ही है । मंत्र बड़ा है तो इसका मात्र 11 या 21 बार पाठ (उच्चारण) करना पर्याप्त रहता है ।
भगवती प्रत्यंगिरा का ये मंत्र समस्त प्रकार के उपद्रवों, बाधाओं और ग्रह अपस्मार को नष्ट करने की क्षमता रखता है । इसी मंत्र के माध्यम से जीवन में सभी प्रकार के सौभाग्य प्राप्त किये जा सकते हैं ।
साधना विधि:
सबसे पहले गणपति पूजन और गुरु पूजन करें । विधि पहले ही पोस्ट की जा चुकी है। यहां सिर्फ लिंक दिया जा रहा है ।
गुरु मंत्र की कम से कम 4 माला अवश्य करें ।
निखिलेश्वरानंद कवच का पाठ अवश्य करें । इससे साधना की ऊर्जा व्यर्थ नहीं होती है और सभी प्रकार की बाधाओं से इतर एक सुरक्षा कवच प्राप्त होता ही है ।
इसके बाद ही चैतन्य संस्कार मंत्रों को सुनना चाहिए ।
इसके बाद भगवती प्रत्यंगिरा की साधना में बैठना चाहिए । मंत्र नीचे दिया जा रहा है । मंत्र की PDF copy और एक ऑडिओ फाइल इसी लेख के आखिर में मिल जाएगी । ताकि आपको मंत्र को प्रिंट करने में आसानी रहे । ऑडओ फाइल इसलिए दी जाती है ताकि आपको उच्चारण समझने में कठिनाई न हो ।
"ॐ नमः श्रीप्रत्यङ्गिरा देव्यै"
नमस्कार पूर्वक दीपक जलाकर निम्न मंत्र का 11 या 21 बार उच्चारण करें ।
"सर्वासिद्धि योगिनीभ्यो नमः" सर्वसिद्धि मातृभ्यो नमः "
।। नित्योदितानन्दनन्दितायै सकलचक्रनायिकायै भगवत्यै चण्डकापालिन्यै षट्पंचाशाक्षरप्रथम स्त्री डम्बर सदाशिवौ हस्रौं हस्रः कुण्डलयोनिगोलकसर्वक्षय हस्रां हस्रीं हसूं ॐ क्रां क्रीं क्रूं क्रौं क्र: नमः महा मंत्रप्रदीपनं देहि हंसिनि निर्वाणमार्गदे सर्वोत्तमोत्तमविषमोप्लव प्रशमनि अमृतकले दुरितारिष्टसंक्लेशदलानि सर्वभवाम्भोधितरिणि सकलशत्रुप्रमथनि देवि आगच्छ आगच्छ हस हस वल्ग वल्ग नर रुधिरांत्रवसाभक्षिणि मम स्वसर्वशत्रून मर्दय मर्दय खाहि खाहि त्रिशूलेन भिन्धि भिन्धि खड्गेन ताडय ताडय छेदय छेदय तावद्यावत मम सकल मनोरथान् साधय साधय परमकारुणिके भगवति महाभैरवरुपधारिणि त्रिदशवरनमिते सकलमंत्रमात्रे तुभ्यं नमः ॐ सकलप्रणेतजन-वत्सले परमेश्वरि देवि महाकालि कालनाशिन प्रदीपमहानिलब्रह्मपरिदर्पिते गोलकपिण्डलाञ्छिते प्रसीद प्रसीद मदनातुरे म्रां द्रां न्रां त्रां त्राहि त्राहि कुरु कुरु कन्यकाडम्बरं शां श्रीं सर्वमुखदातारे महाभोगपरावहे कालानल ह्रां शां महाहंस भ्रां भ्रीं भ्रूं भ्रौं भ्रः स्वाहा ।।
गुरु पूजन से लेकर भगवती प्रत्यंगिरा के इस दुर्लभ मंत्र की साधना तक अधिक से अधिक एक या सवा घंटे का समय लगता है । आप सब इस दुर्लभ और गोपनीय साधना को अपने जीवन में आत्मसात कर सकें, उसकी साधना कर सकें, जीवन की प्रत्येक बाधा को ठोकर मारकर दूर कर सकें और इससे भी बढ़कर भगवती महाकाली और सदगुरुदेव का आशीर्वाद आपको प्राप्त हो सके ।
ऐसी ही शुभेच्छा है ।
Comments