कुंजिकास्तोत्र जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि ये यह स्तोत्र कुंजी की तरह ही काम करता है । सदगुरुदेव ने इस कुंजिकास्तोत्र को बताते हुये स्पष्ट किया है कि भगवान शिव ने माता पार्वती को यह मंत्र बताते हुए कहा था कि अगर साधक को किसी प्रकार का कोई मंत्र ज्ञान नहीं हो या दुर्गा सप्तशती का ज्ञान नहीं तो तो वह केवल कुंजिका स्तोत्र का एक बार पाठ कर ले, तब भी उसके सारे कार्य पूर्ण होते ही हैं।
मेरा मानना है कि जो लोग ज्यादा व्यस्त रहते हैं और इस आपाधापी से भरे हुये जीवन में साधना, जप, तप के लिए अधिक समय नहीं निकाल पाते हैं, तो उनके लिए यह कुंजिकास्तोत्र एक वरदान की तरह ही है । इसका मात्र 1, 11 या 21 बार पाठ करना पर्याप्त रहता है । जो पाठ करने में कठिनाई महसूस करते हैं, उनको इस स्तोत्र को सदगुरुदेव की आवाज में अपने घर में अवश्य बजाना चाहिए और उसका श्रवण करना चाहिए ।
इससे भी जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति का रास्ता प्रशस्त होता ही है ।
जो साधक हैं, उनके लिए भी एक संदेश है कि कभी-कभी हम भ्रम में उलझ जाते हैं, कि उक्त मन्त्र सही या नहीं या कहीं कीलित तो नहीं? किन्तु क्या आप एक बात जानते हैं कि जो भी साधक दुर्गा सप्तशती के कवच, अर्गला एवं कीलक का नवरात्रि में पाठ करते हैं या सदैव करते रहते हैं, उनके तो सारे मन्त्र स्वयं ही उत्कीलित हो जाते हैं, और सिद्ध कुञ्जिका तो वैसे भी मंत्रों को सिद्ध करने की चाबी है भाइयों…… :)
मेरे प्यारे भाइयों बहनों ! वैसे भी प्रत्येक कार्य और मार्गदर्शन सदगुरुदेव के द्वारा ही संचालित हो रहा है तो फिर कैसी शंका। हमें तो बस साधना करनी है…. और बढ़ना है उच्चता की ओर, और गुरुदेव की तरफ प्रत्येक कदम उनसे प्यार करके साधना करके ही बढ़ाया जा सकता है न...
आप तो बस साधना करिये …. :) और मुस्कुराइए कि आप निखिल शिष्य हैं और उनकी ही क्रिया शैली के एक अंग, एक अंश, जिसके जुड़ते ही शायद कोई कृति न निर्मित होती हो, अतः आप बस अपने पूर्ण समर्पण, प्यार और स्नेह के साथ जुड़ने की ही क्रिया कीजिये…… :)
सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ।
येन मंत्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत् ।। 1 ।।
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ।। 2 ।।
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ।। 3 ।।
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति ।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।
पाठपात्रेण संसिद्धयेत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ।। 4 ।।
अथ मंत्रः
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे
।। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ।।
।। इति मंत्रः ।।
नमस्ते रुद्ररुपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि । नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ।। 1 ।।
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि । जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ।। 2 ।।
ऐंकारी सृष्टिरुपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका । क्लींकारी कामरुपिण्यै बीजरुपे नमोSस्तु ते ।। 3 ।।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी । विच्चे चाभयदां नित्यं नमस्ते मन्त्ररुपिणि ।। 4 ।।
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी । क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ।। 5 ।।
हुं हुं हुंकाररुपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी । भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ।। 6 ।।
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ।। 7 ।।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा । सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे ।। 8 ।।
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे । अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ।।
यस्तु कुञ्जिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत् । न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ।।
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे
कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्
।। ॐ तत्सत् ।।
चण्डी अनुष्ठान विधि
अगर साधक किसी समस्या से ग्रस्त है तो उसे गायत्री मंत्र की 1 माला जप करने के बाद कुंजिकास्तोत्र के 51 या 108 पाठ अवश्य करने चाहिए । इससे साधक आध्यात्मिक बल के माध्यम से अपनी समस्या का निवारण करने में सफल रहता है ।
गायत्री मंत्र
।। ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।।
कुंजिका स्तोत्र की MP3 file को आप यहां से डाउनलोड़ करके अपने फोन में या कम्प्यूटर में सेव कर सकते हैं ।
कुंजिकास्तोत्र को आप PDF फाइल के रुप में यहां से डाउनलोड़ कर सकते हैं ।
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