संकल्प सिद्धि और मन पर नियंत्रण
हम सबने अपने साधना काल के लंबे समय में संकल्प सिद्धि के बारे में अवश्य सुना है । सदगुरुदेव ने भी कई बार इसका उल्लेख किया है कि विज्ञान किसी विचार को साबित करने में कई वर्ष अवश्य लेता है लेकिन उसको मूर्त रुप में प्रकट अवश्य कर देता है, फिर चाहे उस कल्पना को हकीकत में बदलने में १०० वर्ष ही क्यूं न लग जायें । यही जीवन का संघर्ष भी है, ज्ञान प्राप्ति की चाह है और उस ज्ञान की प्राप्ति के लिए बहुत से वैज्ञानिकों के बलिदान की कहानी भी है ।
लेकिन अध्यात्म का विज्ञान एक अलग ही प्रकार से कार्य करता है । यहां पर एक तपस्वी अपनी कल्पना को अपनी साधनात्मक शक्ति से युक्त करके क्षण भर में ही मूर्त रुप प्रदान कर सकता है ।
आप सोच रहे होंगे कि साधना तो आप भी करते हैं तो क्या ऐसा आपके लिए भी संभव हो सकता है?
तो, इस प्रश्न का उत्तर हां और ना दोनों में ही रहेगा ।
संकल्प सिद्धि बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि आपका अपने गुरु पर कितना विश्वास है, और अपनी साधना पर कितना विश्वास है । अगर विश्वास में कोई कमी नहीं है तो आपका संकल्प किया हुआ कार्य सिद्ध अवश्य होगा । समय कम या ज्यादा लग सकता है, उसके बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं है लेकिन, कार्य पूर्ण अवश्य होगा ।
और विश्वास का आधार है समर्पण । अगर आपने अपना समर्पण अपने गुरु के चरणों में कर दिया है तो विश्वास तो खुद ही हो जाता है ।
मैंने बहुत से गुरु भाइयों को कहते सुना है कि उनको साधना में सफलता नहीं मिल पा रही है । मन तो बहुत करता है कि उनकी मदद करुं लेकिन, कैसे? जिनको अपने गुरु के प्रति मन में संशय रहता हो, साधना के मंत्र के प्रति संशय रहता हो, जो विधि - विधान, यंत्र, उपकरण इत्यादि के ही चक्कर में पड़े रहते है, उनकी मदद मैं तो क्या कोई भी नहीं कर सकेगा ।
मैं जो भी लेख यहां लिखता हूं, उसमें साधनात्मक ज्ञान बहुत ही कम होता है । ज्यादातर समय मैं यही बात समझाने की कोशिश करता हूं कि एक साधक की भावभूमि कैसी हो सकती है । हमारा चिंतन कैसा होना चाहिए, किस प्रकार से हम अपने अंदर की नकारात्मकता को बाहर निकाल सकते हैं और किस प्रकार से हम अपने ह्रदय स्थल को इतना पवित्र और सहज बना सकें कि वहां सदगुरुदेव को विराजने में क्षण भर का समय न लगे । आप पढ़ लीजिए सभी लेखों को, सिर्फ इसी बात को अलग - अलग तरीके से समझाने का प्रयास किया है मैंने ।
आप सोच रहे होंगे कि क्या साधना महत्वपूर्ण नहीं है?
बिलकुल है ।
लेकिन एक साधक की भावभूमि की तुलना किसी किसान के खेत से करना बहुत जरूरी है । अगर किसान खेत की जुताई करके, उसमें से कूड़ा - करकट निकालकर, पानी देकर मिट्टी को खेती योग्य न बना सके, तो उसके बोये हुए बहुत सी बीज स्वतः ही बेकार हो जाएंगे । लेकिन अगर खेत की जुताई, गुड़ाई करके उसको तैयार किया गया है तो फिर आप उसमें जो चाहें वह बीज डालकर उगा सकते हैं ।
एक साधक का जीवन भी ऐसा ही है । हम लोग जब तक अपने अंदर के उन भावों का परिष्कार नहीं कर देते जो हमारी साधना में विपरीत भूमिका निभाते हैं तब तक साधना में सफलता मिलना संदिग्ध ही रहता है ।
ज्यादातर साधक अपने स्वयं को परिष्कृत ही मानकर चलते हैं और इस बात की कोई जरूरत नहीं समझते कि अभी स्वयं के अंतर में क्या साफ करना बाकी रह गया है .... ऐसे ही साधक आपको दुर्लभ साधनाओं और दुर्लभ विधानों की खोज में भटकते मिल जाएंगे । उनको लगता है कि उनको कोई ऐसा मंत्र, ऐसा विधान चाहिए जो किसी के पास न हो, और उसी के माध्यम से उनको अत्यंत गुप्त सिद्धियां प्राप्त हो जाएंगी ।
जबकि एक साधारण साधक जिसका अंतःकरण पवित्र है, भावभूमि सरल और सहज है, जिसने अपना जीवन केवल स्वयं को परिष्कृत करने में लगाया है वह तो सदगुरुदेव प्रदत्त किसी भी साधना के अभ्यास से जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है । इस प्रकार के साधकों को कई बार तो साधना करने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है, वह क्षमता उसके अंदर सदगुरुदेव के आशीर्वाद से स्वतः ही विकसित हो जाती है ।
आज चर्चा चूंकि संकल्प सिद्धि की है और लिखना उसी विषय पर चाहिए जिसको साधक ने स्वयं अनुभव किया हो तो स्वयं का ही व्यावहारिक उदाहरण देना उचित समझता हूं -
आजकल इंटरनेट का युग है । ज्यादातर साधक इंटरनेट के माध्यम से टीवी देखने वाली बात से परिचित होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है । लगभग 2 वर्ष पहले की बात है कि मेरा मन एक वेब सीरीज में उलझ गया । उस वेब सीरीज का नाम था "The Flash" ये सीरीज एक तरह से विज्ञान गल्प ही है लेकिन हॉलीवुड़ तकनीक के मामले में बहुत आगे है और ये लोग विज्ञान गल्प को भी बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत कर सकते हैं ।
(The Flash web series)
नित नये कंसेप्ट, नयी बातें, नयी तकनीक ... इस सबकी वजह से मेरा मन उस वेब सीरीज को देखते रहने के लिए बहुत बेचैन रहने लगा था । जब भी मौका मिलता, अगला एपीसोड़ देखने लगता । सच कहूं तो लत जैसी लग गयी थी मुझे । और अपनी इस आदत से मैं बहुत परेशान भी हो गया था, क्योंकि लगातार टीवी देखने से सिर में दर्द होने लग गया था, आंखें परेशान होने लग गयी थीं ....लेकिन मन .... मानता ही नहीं था ।
कई बार मन को हटाकर वेब सीरीज न देखने को राजी भी कर लिया था । कुछ दिन सच में देखा भी नहीं । बहुत खुशी हुयी देखकर कि चलो, इससे पीछा छूटा ।
एक दिन मन ने कहा कि चलो एक बार फिर से देखते हैं, एक बार देखने से क्या बिगड़ जाएगा? मैंने भी सोचा कि चलो अब तो कई दिन हो गये हैं, अब शायद लत नहीं लगेगी । देखने लग गये.... आप विश्वास न कर पायें पर 2 दिन के अंदर मैं वापस उसी अवस्था में पहुंच गया जैसा पहले था ।
अब मुझे सच में खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि मैंने अपने मन की क्यों सुनी ।
उसी शाम को जब दैनिक पूजन करने बैठा तो ध्यान की अवस्था में ही मैंने अपनी संकल्प शक्ति के माध्यम से इस वेब सीरीज के सभी पात्रों को एक स्थान पर प्रकट किया, उन सबको एक अत्यंत मजबूत (जो नष्ट न हो सके) पदार्थ के थैले में बंद किया और सूर्य की प्रचण्ड अग्नि और दहकते लावे में छोड़ आया ।
इतना सब तो मुझे अभी भी ध्यान है कि बाद में पूजन समाप्ति के बाद बहुत राहत महसूस हो रही थी ।
खैर, 2 दिन तक उस वेब सीरीज की तरफ देखा भी नहीं । 2 दिन बाद जब सिर्फ चैक करने के लिए अपना टैबलेट खोला तो चाहकर भी उस वेब सीरीज को ढूंढ नहीं पाया । मन में खुशी हुयी कि चलो यहां से तो पिण्ड छूटा ।
बाद में मुझे पता चला कि ये वेब सीरीज सिर्फ मेरे टैबलेट से ही गायब नहीं है, इसको इंटरनेट पर कहीं भी नहीं देखा जा सकता है । टीवी पर भी नहीं । कम से कम हिंदुस्तान में तो ऐसा ही था ।
इसके अलावा मेरे मन से उस वेब सीरीज के लिए लगाव भी 99 प्रतिशत खत्म हो चुका था ।
ये बहुत ही आश्चर्य की बात थी मेरे लिए । आध्यात्मिक जगत में किये गये किसी एक कार्य का भौतिक जगत पर सीधा प्रभाव एक बहुत ही बहुत ही नया अनुभव था मेरे लिए । हालांकि मैं पहले भी संकल्प शक्ति के माध्यम से कुछ कार्य कर चुका था लेकिन वो सब कार्य सिर्फ मुझ तक सीमित थे । ये ऐसा पहला कार्य था जिसका प्रभाव पूरे देश पर पड़ा था । बाद में ये भी पता चला कि जिस कंपनी के माध्यम से इस वेबसीरीज को हिंदस्तान में दिखाया जा रहा था, उसने रातों रात अपना काम-काज समेट लिया था ।
जब इस घटना की पुष्टि मैंने सदगुरुदेव से की तो उन्होंने बताया कि ये सिर्फ एक कल्पना नहीं थी ....
आपमें से जो भी लोग THE FLASH वेब सीरीज देखे होंगे तो ऊपर बताये सभी लक्षण आपने भी महसूस किये होंगे कि किस प्रकार से इस वेब सीरीज से लगाव और अलगाव दोनों ही कितने विलक्षण तरीके से हुआ था ।
ये कोई बहुत बहादुरी का काम नहीं था । सच पूछिए तो इस प्रकार का कार्य केवल वे लोग करते हैं जिनकी साधना की शक्ति तो बहुत प्रबल होती है लेकिन अपने मन पर कोई नियंत्रण नहीं होता है ।
मैंने भी अपने मन की कमजोरी को महसूस किया है और ये भी पाया कि इंटरनेट पर ऐसी सैकड़ों अन्य वेब सीरीज हैं । किस - किस को नष्ट करेंगे? करना है तो अपने स्वयं के मन पर नियंत्रण करना सीखना चाहिए ।
दूसरी अन्य वेब सीरीज अब भी देखता हूं लेकिन अब मैं स्वयं पर नियंत्रण करना सीख रहा हूं । जो किया था वह अनजाने में हुआ था, पर संकल्प की शक्ति को स्पष्ट रुप से परिलक्षित भी कर लिया था । यहां ये भी गौर करना उचित रहेगा कि जिस शक्ति के माध्यम से मैंने इस कार्य को अंजाम दिया था, उसी शक्ति के दुबारा प्रयोग से इसकी ठीक करने का भी प्रयास किया था लेकिन वह संभव नहीं हो सका । मेरी पूरी ताकत लगाने के बाद भी सब कुछ पहले जैसा नहीं हो सका ।
स्पष्ट है कि सब कुछ समय की धारा में एक ही दिशा में चलता है । आप कुछ भी बदलाव करें, उसको वापस पहले जैसा कर सकें, यह बहुत ही दुर्लभ है । इसलिए अगर संकल्प शक्ति प्राप्त करते हैं तो उसका प्रयोग भी करना आना चाहिए ।
शिवशक्ति स्थापन
ॐ नमो भगवते रुद्राय । अचलमचलमाक्रम्याक्रम्य महावज्रकवचैरस्त्रैः राजचोरसर्पसिंहव्याघ्राग्न्याद्युपद्रवं नाशय नाशय । ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं श्रीं क्लीं ब्लूं फ्रों आं ह्रीं क्रों हुं फट् स्वाहा । त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टि वर्धनम उर्वारुकमिव बंधनान मृत्युर्मक्षीय मामृतात् । अग्निं दूतं वृणीमहे होतारं विश्ववेदसम् । अस्त यज्ञस्य सुक्रतुम् । वर्षन्तु ते विभावरि दिवो अभ्रस्य विद्युतः । रोहन्तु सर्वबीजान्यव ब्रह्म द्विषो जहि । ॐ नमो भगवते रुद्राय । ॐ छां छायायै स्वाहा । ॐ चं चतुरायै स्वाहा । ॐ कुं कुलि स्वाहा । ॐ खुं खुलि स्वाहा । ॐ हिं हिलि स्वाहा । ॐ जं जलि स्वाहा । ॐ झं झलि स्वाहा । ॐ ऐं पिलि स्वाहा । ॐ ऐं पिलि पिलि स्वाहा । ॐ हरं स्वाहा । ॐ हरहरं स्वाहा । ॐ गं गंधर्वाय स्वाहा । ॐ रं रक्षसे स्वाहा । ॐ रं रक्षोsधिपतये स्वाहा । ॐ भूः स्वाहा । ॐ भुवः स्वाहा । ॐ स्वः स्वाहा । ॐ उल्कामुखि स्वाहा । ॐ रुं रुद्रजटि स्वाहा । ॐ अं ऊं मं ब्रह्मविष्णुरुद्रतेजसे स्वाहा । ॐ नमो भगवते रुद्राय । अचलमचलमाक्रम्याक्रम्य महावज्रकवचैरस्त्रैः राजचोरसर्पसिंहव्याघ्राग्न्याद्युपद्रवं नाशय नाशय । ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं श्रीं क्लीं ब्लूं फ्रों आं ह्रीं क्रों हुं फट् स्वाहा । त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टि वर्धनम उर्वारुकमिव बंधनान मृत्युर्मक्षीय मामृतात् । अग्निं दूतं वृणीमहे होतारं विश्ववेदसम् । अस्त यज्ञस्य सुक्रतुम् । वर्षन्तु ते विभावरि दिवो अभ्रस्य विद्युतः । रोहन्तु सर्वबीजान्यव ब्रह्म द्विषो जहि । ॐ नमो भगवते रुद्राय ।
इस मंत्र के सतत उच्चारण से स्वतः कंपन और ध्यान की स्थिति निर्मित होती है । ये अकेला मंत्र साधक के लिए निर्गत द्वार और परा शक्तियों तक आवागमन करने के लिए लोकानुलोक पथ को खोल देता है । वास्तव में यह त्र्यम्बक मंत्र सामान्य मंत्र नहीं है । आप स्वयं ही सोचिये कि जिन महादेव के पांचों मुख से पांच प्रकार के आगम शास्त्र निकले हैं, उन्हीं का प्रिय ये मंत्र कैस उन महाआगमों की दुरुहता और जटिलता को हमारे लिए सुगम नहीं कर देगा । यदि मात्र इसी मंत्र का उच्चारण किसी आत्मा विशेष का ध्यान रखकर किया जाए तो निश्चित ही वह आत्मा आकर्षित होकर आपसे संपर्क करती ही है । इस मंत्र की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि ये आपकी तीक्ष्ण साधनाओं के लिए मंडल के साथ स्वयं ही रुद्र भैरव वीर स्थापन की क्रिया संपादित कर देती है ।
आपको मात्र घृत दीप प्रज्वलित कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर आचमनी से शिवलिंग पर जल अर्पित करते जाना है और प्रत्येक आचमनी युक्त जल के साथ मंत्र का उच्चारण करना है । इस मंत्र का 51 बार उच्चारण होना ही चाहिए, दिशा उत्तर या पूर्व होगी ।
भगवान शिव की कृपा आप सभी को प्राप्त हो सके, जीवन में संकल्प शक्ति का प्रवाह बन सके, जीवन में सरलता और सहजता जैसे अत्यंत पवित्र गुणों को आप आत्मसात कर सकें, ऐसी ही शुभेच्छा है ।
अस्तु ।
इस शिव शक्ति स्थापन के दुर्लभ मंत्र की PDF फाइल आप यहां से डाउनलोड़ कर सकते हैं -
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