घटना करीब 15 वर्ष पुरानी है । दैनिक साधना का क्रम अचानक से बदल सा गया था । वैसे तो मैं निखिलेश्वरानंद कवच का पाठ कभी - कभी ही करता हूं पर विगत 10 दिनों से स्वतः ही न सिर्फ पाठ करने लग गया था, बल्कि संख्या भी बढ़ गयी थी । अगर ठीक से याद है तो मैं उस समय, सुबह - सुबह ही 11 पाठ करने लग गया था । कभी - कभी मुझे खुद पर आश्चर्य होने लगता था कि मैं ये कर क्या रहा हूं । पर गुरु इच्छा मानकर चुपचाप दैनिक पूजन के साथ ही साथ कवच का भी पाठ चलने लग गया ।
11 या 12 वें दिन मुझे अपने ऑफिस के एक साथी को शाम के समय उसके गांव जाने का कार्यक्रम बन गया । उस जमाने में मोटर साईकिल होना भी बड़ी बात मानी जाती थी तो हम भी चल पड़े उसको गांव तक छोडने । मुझे याद नहीं पड़ता कि उससे पहले मैंने कभी हैलमेट लगाकर मोटर साईकल चलाई हो, पर उस दिन न सिर्फ किसी से हैलमेट मांगा भी, बल्कि उसे पहनकर गया भी । आप शायद विश्वास न करें पर शहर से निकलते ही मुश्किल से 5 मिनट भी नहीं बीते थे कि एक एक्सीड़ेंट में, मैं और मेरा मित्र दोनों ही चोटिल हो गये । अगर मेरे सिर पर हैलमेट न होता तो शायद सिर में अच्छी - खासी चोट लगनी अवश्यंभावी थी । पर गुरु कृपा से हल्की फुल्की चोट से निबट लिये ।
हो सकता है कि ये मात्र एक इत्तेफाक हो । पर ऐसे इत्तेफाक जीवन में 2 बार और हुए और दोनों ही बार प्राण रक्षा हुयी । और इत्तेफाक ये भी रहा कि हर बार, निखिलेश्वरानंद कवच का पाठ स्वतः ही होने लगता था । ये तो हमारा ह्रदय ही जानता है कि क्या इत्तेफाक होता है और क्या गुरु कृपा होती है ।
बस, गुरु प्रेरणा ही कहिए, कि आज इस अद्वितीय, दुर्लभ और दुनिया के सबसे प्रभावशाली कवच को यहां पोस्ट किया जा रहा है । अगर आप विनियोग, कर न्यास, अंग न्यास न भी कर पायें और, केवल निखिलेश्वरानंद कवच के श्लोकों का पाठ करें, तब भी लाभ होता ही है । मात्र 10 श्लोकों के इस कवच का महात्म्य शब्दों में वर्णित कर पाना असंभव है । बस, आप इसका पाठ करें और इसका लाभ आपको, आपके परिवार को मिले, ऐसी ही शुभेच्छा है ।
(इस कवच को यहां पोस्ट भी किया जा रहा है और इसकी एक PDF file भी पोस्ट के आखिर में अपलोड़ कर दी जाएगी ताकि आप सीधे डाउनलोड़ करके प्रिंट कर सकें ।)
श्री निखिलेश्वरानंद कवचम्
विनियोग
(हाथ में जल लेकर नीचे लिखे हुए मंत्र को पढ़कर, जमीन पर छोड़ दें )
ॐ अस्य श्री निखिलेश्वरानंद कवचस्य श्री मुदगल ऋषिः अनुष्टुप छंदः
श्री गुरूदेवो निखिलेश्वरानंद परमात्मा देवता
“महोस्त्वं रूपं च” इति बीजम
“प्रबुद्धम निर्नित्यमिति” कीलकम
“अथौ नैत्रं पूर्ण” इति कवचम
श्री भगवतो निखिलेश्वरानंद प्रीत्यर्थं पाठे विनियोगः ।
कर न्यास
(सामने दिये हुए अंग से प्रणाम करें)
श्री सर्वात्मने निखिलेश्वराय – अंगुष्ठाभ्यां नमः (दोनों अंगूठों को मिलाकर प्रणाम करें)
श्री मंत्रात्मने पूर्णेश्वराय - तर्जनीभ्यां नमः (दोनों तर्जनी उंगलियों को मिलाकर प्रणाम करें)
श्री तंत्रात्मने वागीश्वराय – मध्यमाभ्यां नमः (दोनों मध्यमा उंगलियों को मिलाकर प्रणाम करें)
श्री यंत्रात्मने योगीश्वराय – अनामिकाभ्यां नमः (दोनों अनामिका उंगलियों को मिलाकर प्रणाम करें)
श्री शिष्य प्राणात्मने सच्चिदानंद प्रियाय – करतल कर प्रष्ठाभ्यां नमः (दोनों हाथों के पृष्ठ भागों को मिलाकर प्रणाम करें, अगर ऐसे न कर पायें तो जैसे हाथ धोये जाते हैं, वैसे उपक्रम करें)
अंग न्यास
(सामने दिये हुए अंग को अपने दाहिने हाथ की उंगलियों से स्पर्श करें)
श्रीं शेश्वरः – ह्रदयाय नमः (अपने ह्रदय को स्पर्श करें)
ह्रीं शेश्वरः – शिरसे स्वाहा (अपने सिर को स्पर्श करें)
क्लीं शेश्वरः – शिखायै वषट (अपनी शिखा या चोटी वाले हिस्से को स्पर्श करें)
तप शेश्वरः – कवचाय हुम (दोनों भुजाओं को स्पर्श करें)
तापे शेश्वरः – नेत्रत्रयाय वौषट (दोनों नेत्रों और आज्ञा चक्र पर स्पर्श करें)
एकेश्वरः करतल कर पृष्ठाभ्यां अस्त्राय फट् (अपने सिर के ऊपर तीन बार चुटकी बजाते हुये, दाहिने हाथ की तर्जनी और मध्यमा उंगलियों से बायें हाथ पर ताली बजायें)
रक्षात्मक देह कवचम
शिरः सिद्धेश्वरः पातु ललाटं च परात्परः ।
नेत्रे निखिलेश्वरानंद नासिका नरकान्तकः ।। 1 ।।
कर्णौ कालात्मकः पातु मुखं मंत्रेश्वरस्तथा ।
कंण्ठं रक्षतु वागीशः भुजौ च भुवनेश्वरः ।। 2 ।।
स्कन्धौ कामेश्वरः पातु ह्दयं ब्रह्मवर्चसः ।
नाभिं नारायणो रक्षेत् उरुं ऊर्जस्वलोsपिवै ।। 3 ।।
जानुनी सच्चिदानंदः पातु पादौ शिवात्मकः ।
गुह्यं लयात्मकः पायात् चित्तंचिंतापहारकः ।। 4 ।।
मदनेशः मनः पातु पृष्ठं पूर्णप्रदायकः ।
पूर्वं रक्षतु तंत्रेशः यंत्रेशः वारुणीं तथा ।। 5 ।।
उत्तरं श्रीधरः रक्षेत् दक्षिणं दक्षिणेश्वरः ।
पातालं पातु सर्वज्ञः ऊर्ध्वं में प्राण संज्ञकः ।। 6 ।।
कवचेनावृतो यस्तु यत्र कुत्रापित गच्छति ।
तत्र सर्वत्र लाभः स्यात् किंचिदत्र न संशयः ।। 7 ।।
यं यं चिंतयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितं ।
धनवान् बलवान् लोके जायते समुपासकः ।। 8 ।।
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगंधर्वराक्षसाः ।
नश्यन्ति सर्वविघ्नानि दर्शानात कवचावृतम् ।। 9 ।।
य इदं कवचं पुण्यं प्रातः पठति नित्यशः ।
सिद्धाश्रम पदारूणः ब्रह्मभावेन भूयते ।। 10 ।।
आप इस कवच की PDF file यहां से डाउनलोड़ कर लें ।
Comentarios