आवाहन भाग - 32
गतांक से आगे...
सिद्ध स्थान वह स्थान होते हैं जिसमें चेतना का स्तर सामान्य रूप से २१ गुना ज्यादा हो। ऐसे स्थान को सिद्ध स्थान तथा ऐसे पूरे क्षेत्र को सिद्ध क्षेत्र कहा जाता है। ऐसे स्थानों पर व्यक्ति मात्र अपने विचारों के माध्यम से ही नहीं बल्कि, अपनी क्रियाओं के माध्यम से भी अपने अंदर उतरने लग जाता है। स्व-खोज तथा आत्मोन्नति की कामना मात्र विचारों तक सीमित न रह कर क्रिया रूप में परावर्तित हो जाती है।
एक प्रकार से देखा जाए तो प्रथम प्रकार के स्थानों में उसे प्रथम भाव अर्थात पशुभाव का आभास और बोध होने लगता है तथा उससे ऊपर आने के लिए सोचने के लिए विवश होने लगता है। दूसरे प्रकार के स्थान में व्यक्ति दूसरे भाव में स्थिर होने लगता है, अर्थात वह क्रियावान हो कर वीर भाव में स्थित होने लगता है। ऐसे स्थानों पर व्यक्ति कई प्रकार के साधन तथा मार्ग का आसरा ले कर अपने जीवन को ऊर्ध्वगामी बनाने की ओर गतिशील होता है। प्रकृति में निहित चेतना निश्चित रूप से उसकी सहायता करती है।
क्या ऐसे स्थानों का निर्माण होता है या यह सहज प्राकृतिक होते है?
ऐसे स्थान पर किस प्रकार से जाया जा सकता है?
मेरे प्रश्नों के उत्तर में उन्होंने बताया कि ऐसे स्थान प्राकृतिक रूप से भी हो सकते हैं तथा अत्यंत उच्चकोटि के योगी इस प्रकार के स्थानों की रचना भी कर सकते है। इस निर्माण के लिए साधक अपनी तपस्या या साधना से संगृहीत की हुई तपः ऊर्जा को चेतना रूप में परावर्तित कर उसे क्षेत्र विशेष में प्रसारित कर देता है। इस तरह जब मूल चेतना का स्तर २१ गुना ज्यादा बढ़ जाता है तब वह क्षेत्र सिद्ध क्षेत्र या सिद्ध स्थान बन जाता है। यह हर कोई व्यक्ति नहीं कर सकता, कोई कोई अत्यंत ही उच्च आध्यात्मिक स्तर प्राप्त सिद्ध ही इस प्रकार की रचना कर सकता है।
इसके अलावा, कई ऐसे स्थान प्राकृतिक रूप से भी होते है। क्योंकि ऐसे स्थान विशेष में कोई निश्चित शक्ति का स्थायी वास होता है तथा उनकी प्राण उर्जा उस क्षेत्र में व्याप्त होती है। ऐसे स्थान का विशेष लोक लोकान्तरो से सबंध होता है तथा वहां पर विविध प्रक्रियाओं के माध्यम से प्राण ऊर्जा तथा चेतना का स्तर बनाये रखने के लिए साधको तथा सिद्धों द्वारा सदैव प्रयत्न होता रहता है।
ऐसे स्थान तृतीय आयाम में तथा चतुर्थ आयाम में भी हो सकते है। तृतीय आयाम के अंतर्गत स्थान भौतिक रूप से दृष्टिगोचर होते है तथा उनमें प्रवेश पाया जा सकता है, हालाकि कई स्थान बीहडो में तथा जंगलो में गुप्त रूप से होते हैं, जो कि सामान्यजन की नज़रों से बचे हुए होते हैं। लेकिन इस प्रकार के कई स्थान हैं जहां पर व्यक्ति जा कर उसकी चैतन्यता का अनुभव कर सकता है । ऐसे स्थानों पर अंत:स्फुरणा किसी न किसी ऐसी प्रक्रिया में संलग्न होने के लिए तुरंत ही अपना असर दिखाती है, जिससे ज्ञान की प्राप्ति हो सके। ऐसे स्थानों में सिद्ध शक्तिपीठ, तंत्र पीठ, तथा विविध मठों आदि का समावेश होता है।
इसके अलावा चतुर्थ आयाम में भी कई ऐसे स्थान है जिनको स्थूल देह से या दृष्टि से देखना संभव नहीं है, लेकिन ऐसे सिद्ध स्थान को देखने के लिए दिव्यनेत्र तथा आतंरिक शरीरों का भी सहारा लेना पड़ता है। ऐसे कई स्थान जम्मू कश्मीर के पर्वतीय क्षेत्र, मनाली तथा देहरादून के पर्वतीय क्षेत्र के आस पास, पंजाब के उत्तरीय तटवर्ती क्षेत्र में, राजस्थान में आबू के जंगलीय प्रदेश में, गुजरात के गिर जंगलो में, वाराणसी तथा हरिद्वार में आस पास वाले इलाके में, बंगाल में वक्रेश्वर तथा कस्बा, आसाम में कामाख्या, मयोंग, डिबरुगढ़ इत्यादि के आस पास ऐसे क्षेत्र हैं। सभी पूर्वोत्तर राज्यों के जंगली क्षेत्र में कापालिक गुप्त मठ तथा वज्रयानी साधकों के मठ विद्यमान हैं, जिनको सामान्य दृष्टि से देखना संभव नहीं है।
इसके अलावा, गोरखपुर का जंगल तथा अमरकंटक से लेकर जबलपुर तक का जंगली इलाका भी ऐसे कई स्थानों से भरा पड़ा है, इसके अलावा जबलपुर में भी कई ऐसे गुप्त स्थान हैं ही। दक्षिण में पश्चिमी घाट का पहाड़ी समूह तथा विशेष रूप से श्रीशैल क्षेत्र में भी ऐसे कई स्थान हैं। इसके अलावा, उडीसा में तीव्र शाक्तमार्गी महासाधकों के कई ऐसे स्थान है। भारतवर्ष के अलावा भी आस पास के क्षेत्र में विशेषतः नेपाल तथा तिब्बत में ऐसे कई स्थान हैं।
सदगुरुदेव से यह सब सुन कर निश्चय ही चौंकने की बारी मेरी थी । इतने विशेष स्थान चतुर्थ आयाम में हो सकते हैं, ऐसी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
सदगुरुदेव ने कहा इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है, ऐसे स्थान पृथ्वी पर कई सदियों से विद्यमान हैं तथा कई सैकडों वर्ष तथा हजारों वर्ष की आयु प्राप्त योगी ऐसे स्थानों पर साधनारत हैं, निश्चित रूप से कई ऐसी विशेष प्रक्रियाऐं हैं, जिनको करने पर साधक इसमें प्रवेश पा सकता है।
मुझे उस अज्ञात सिद्ध महात्मा की बात याद आ गई। उन्होंने महासिद्ध मंत्र प्रयोग के बारे में बताया था, मैं अपने आप को अब रोक नहीं सका, मैंने पूछा कि यह महासिद्ध मंत्र प्रयोग क्या है तथा इसकी प्रक्रिया क्या है?
सदगुरुदेव ने मुसकुराहट के साथ कहा कि यह प्रयोग सहज है, इसको संपन्न करने के बाद इस विषय के सबंध में व्यक्ति की कई जिज्ञासाएं शांत होती हैं।
साधक को यह प्रयोग ग्रहण काल (चंद्र ग्रहण या सूर्य ग्रहण) में करना चाहिए। साधक को चाहिए कि वह उत्तर दिशा की तरफ मुख कर ग्रहण काल में सफ़ेद वस्त्रों को धारण कर सफ़ेद आसन पर बैठ कर साधक को निम्न मंत्र की ५१ माला करनी चाहिए.
।। ॐ ह्रीं श्रीं महासिद्धाय नमः ।।
यह जप स्फटिक माला से हो, इसमें और किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं है ।
बस एकांत में जप करना चाहिए, अगर साधक अपने कमरे में साधना कर रहा है तो उस वक्त कमरे में और कोई नहीं हो। इसके बाद कभी भी इस मंत्र का मानसिक रूप से ५१ बार जाप कर इस विषय में कोई भी प्रश्न हो तो उसे ३ बार मन ही मन उच्चारण कर रात्रि काल में सो जाने पर उसका उत्तर सिद्ध क्षेत्र के कोई भी संरक्षक स्वप्न में दे देते है.
मैंने पूछा कि यह सिद्ध क्षेत्र के संरक्षक क्या हैं?...
(क्रमशः)...
Comments