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यंत्र विशेषांकः जन्म कुंडली के भावों का शोधन - भाग ‍‍‌2

Updated: Mar 12

जन्म चक्र सिद्धि यंत्र


जन्म चक्र सिद्धि यंत्र
जन्म चक्र सिद्धि यंत्र

मैं आशा करता हूं कि आप सभी को जन्म चक्र सिद्धि यंत्र प्राप्त हो गये होंगे । अब समय है इस पर साधना संपन्न करने का, जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने प्रतिकूल ग्रहों को अनुकूल बनाकर जीवन की गुत्थियों को सुलझा सकता है । हालांकि इसके लिए आपको अपना सर्वाष्टक वर्ग बनाकर देख लेना चाहिए कि आपके जन्मांग चक्र या जन्म कुंडली का कौन सा भाव कमजोर है या बहुत ज्यादा मजबूत है ।


जन्म कुंडली में 12 भाव या घर होते हैं और प्रत्येक घर में कोई न कोई राशि होती है । प्रत्येक राशि का संबंध किसी न किसी ग्रह से होता ही है । कुंडली में अलग - अलग भावों में ग्रह अलग - अलग भी विराजमान हो सकते हैं और एक साथ भी, परिस्थिति चाहे जो भी हो, उसका प्रभाव हमारे पूरे जीवन पर पड़ता है । जन्म कुंडली को समझना अत्यंत दुष्कर है और एक श्रमसाध्य कार्य है । हालांकि जब हम अपनी जन्म कुंडली को प्रोसेस करके, उसका सर्वाष्टक वर्ग बना लेते हैं तो उसके माध्यम से अपने जीवन को समझना न सिर्फ बहुत आसान हो जाता है बल्कि जन्म कुंडली के भावों का शोधन भी बहुत आसानी से किया जा सकता है ।


सर्वाष्टक वर्ग
उदाहरण के लिए सर्वाष्टक वर्ग

उदाहरण के लिए मैंने एक गुरु भाई का सर्वाष्टक वर्ग बनाकर यहां ऊपर दिया है । इसमें जो गिनतियां दी गयी हैं, उनको आप अपने हाईस्कूल के रिपोर्ट कार्ड जैसा ही समझें ।


किसी भी भाव या घर में अगर हमें 30 गिनतियां प्राप्त हो जाती हैं तो वह भाव अपना श्रेष्ठ फल प्रदान करेगा । अगर 30 से कम हैं तो भाव के फल में उसी अनुपात में न्यूनता आ जाती है ।


जैसे इसी व्यक्ति के कई भाव ऐसे हैं जिनमें 30 से कम गिनतियां हैं जैसे कि पहला भाव, दूसरा भाव, पांचवां भाव, आठवां भाव और बारहवां भाव । तो सवाल ये उठता है कि किस भाव का शोधन पहले किया जाए जिससे जीवन में अनुकूलता आना शुरु हो ।


तो, इसका जवाब होगा कि अगर हम पहले भाव यानी लग्न का शोधन कर लें तो इस व्यक्ति को जीवन में अनुकूलता मिलना प्रारंभ हो जाएगी । दरअसल लग्न हमारे जीवन का भी केंद्र है और इसी में इनको सबसे कम शुभ रेखायें, मात्र 25 मिली हैं । सीधी बात है, इस व्यक्ति में न तो आत्मविश्वास है, न ही कोई विशेष विचारधारा, न भविष्य की रूपरेखा और न ही जीवन को चला पाने की स्वयं की क्षमता ।


इसलिए इस व्यक्ति को सबसे पहले अपने लग्न का ही शोधन करना उचित रहेगा ।


अगर आपने अपना सर्वाष्टक वर्ग बना लिया है तो आप जानते ही होंगे कि आपको किस भाव का शोधन सबसे पहले करना चाहिए । अगर आप नहीं जानते हैं कि सर्वाष्टक वर्ग कैसे बनाया जाए और/या किस भाव का शोधन सबसे पहले किया जाए तो एक साधारण शुल्क चुकाकर मुझसे WhatsApp #897948067 पर संपर्क कर लीजिए । मैं भाव शोधन में आपकी पूरी मदद करुंगा । शुल्कः ₹300/= मात्र

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जन्म चक्र शोधन के लिए हमारे पास 12 भाव हैं लेकिन हमें सभी 12 भावों का शोधन करने की आवश्यकता नहीं है । हमें केवल उन भावों का शोधन करने की आवश्यकता होती है जो जरूरत से ज्यादा कमजोर या जरूरत से ज्यादा मजबूत होते हैं ।


जरूरत से ज्यादा मजबूत भाव भी जीवन में समस्यायें खड़ी कर सकते हैं । कारण सिर्फ यही है कि अगर सारा बल कुछ गिने चुने भावों को ही मिल जाएगा तो बाकी के भाव कमजोर हो जाएंगे ।


अष्टक वर्ग ज्योतिष में हमने पढ़ा था कि सभी 12 भावों को मिलने वाली शुभ रेखाओं का कुल योग 386 से अधिक नहीं हो सकता है । और, अगर किसी भाव को ज्यादा शुभ रेखायें मिल रही हैं तो, स्पष्ट है कि किसी दूसरे भाव को कम रेखायें मिलेंगी । इसका सीधा अर्थ यही है कि अगर जीवन का एक पक्ष बहुत मजबूत हो गया है तो दूसरा पक्ष स्वाभाविक रूप से कमजोर हो जाएगा ।


इसीलिए जन्मांग चक्र के शोधन की आवश्यकता पड़ती है ताकि कमजोर भावों के लिए भी संतुलन लाया जा सके ।


 

जन्म कुंडली के भावों का शोधन

साधना विधि


कुल माला संख्याः 51


दिनः शुक्ल पक्ष का सोमवार या पूर्णिमा, ब्रह्म मुहुर्त


दिशाः पूर्व या उत्तर


दीपकः तिल के तेल का दीपक लगायें । दीपक में जो रुई प्रयोग करें, पहले उसे हल्दी से भिगोकर सुखा लें और उसके सामने ह्रीं (hreem) बीज की 11 माला संपन्न कर लें । ये काम साधना में बैठने से पहले ही कर लें ।


मालाः रुद्राक्ष या विजय सिद्धि माला अगर आप रुद्राक्ष माला प्रयोग करने जा रहे हैं तो प्राण प्रतिष्ठित माला का प्रयोग करें । माला में प्राण प्रतिष्ठा की विधि पहले ही प्रकाशित की जा चुकी है।


6, 8, 12 वें भाव के शोधन के लिए तिल के तेल का दीपक कभी इस्तेमाल न करें । ये शत्रु भाव होते हैं और तिल के तेल का दीपक जलाने पर ये पुष्ट होने लगेंगे और आपके लिए समस्या खड़ी कर सकते हैं ।

6, 8 या 12 वें भाव के लिए आप सरसों के तेल का दीपक जला सकते हैं ।


6, 8, या 12 वें भाव के शोधन के लिए दिशा पश्चिम या दक्षिण होगी ।


6, 8 या 12 वें भाव के शोधन के लिए कृष्ण पक्ष के शनिवार का दिन या अमावस्या साधना के लिए निर्धारित है ।


मंत्र


।। ऐं ह्रीं क्लीं ................... क्लीं ह्रीं ऐं ।।

Aing Hreeng Kleeng ...... Kleeng Hreeng Aing


मंत्र के बीच में जो जगह छोड़ी गयी है, वह बीज मंत्र के लिए है । बीज मंत्र कौन सा प्रयोग होगा ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस भाव का शोधन करना चाहते हैं । जिस भी भाव का शोधन करना चाहें, उसका बीज मंत्र आपको यंत्र में ही मिल जाएगा ।


पहले भाव का बीज मंत्रः ह्रां

दूसरे भाव का बीज मंत्रः यं

तीसरे भाव का बीज मंत्रः हं

चौथे भाव का बीज मंत्रः त्रं

पांचवें भाव का बीज मंत्रः सं जं

छठवें भाव का बीज मंत्रः स्फुं

सातवें भाव का बीज मंत्रः क्लीं

आठवें भाव का बीज मंत्रः तं

नवम भाव का बीज मंत्रः मं

दशम भाव का बीज मंत्रः स्वं

एकादश भाव का बीज मंत्रः ह्रीं

द्वादश भाव का बीज मंत्रः श्रुं


सातवें भाव में कुमकुम से क्लीं लिख लीजिए ।
जन्म चक्र सिद्धि यंत्र
जन्म चक्र सिद्धि यंत्र

मान लीजिए किसी भाई अथवा बहन को अपने दूसरे भाव का शोधन करना है । यंत्र में दूसरे भाव में यं बीज लिखा हुआ है, आपको इसी बीज मंत्र का प्रयोग मूल मंत्र के साथ करना होगा । इस प्रकार दूसरे भाव का शोधन करने वाले व्यक्ति के लिए मंत्र इस प्रकार होगा -


।। ऐं ह्रीं क्लीं यं क्लीं ह्रीं ऐं ।।

Aing Hreeng Kleeng Yam Kleeng Hreeng Aing


दूसरे भाव का शोधन करने वाले साधक को इसी मंत्र की 51 माला करनी होंगी ।


विधिः बाजोट या चौकी पर सफेद वस्त्र बिछा लें । और उस वस्त्र पर अपने जन्म चक्र का निर्माण करें । लग्न में अपना नाम और राशि लिख लें ।


जन्मांग चक्र बनाने के लिए आप अष्टगंध या कुंकुम का प्रयोग कर सकते हैं । ये जन्मांग चक्र पूरी तरह से खाली होगा, यानी केवल कुंडली के 12 घर बनेंगे । उनमें आपको अपनी कुंडली की ग्रह या राशियां नहीं लिखनी है । जन्मांग चक्र बनाने के लिए आप उंगली का प्रयोग कर सकते हैं या किसी पतली लकड़ी में थोड़ी सी रुई लगाकर उसे पेन की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं ।


अब थोड़ा जगह छोड़कर इस जन्मांग चक्र के नीचे सफेद तिलों की 3 ढेरी बना लीजिए -


  • पहली ढेरी पर कलश या पानी का पात्र रख लीजिए । कलश में आप जल, कुंकुम, हल्दी, एक सिक्का, दूर्वा और अक्षत अवश्य डाल दें ।

  • दूसरी ढेरी पर जन्म चक्र सिद्धि यंत्र रख लीजिए ।

  • तीसरी ढेरी पर तेल का दीपक रहेगा ।


दो दीपक प्रयोग में आयेंगे - पहला दीपक तो तिल की ढेरी पर ही रहेगा जैसे कि ऊपर बताया गया है। दूसरा तेल का दीपक आप सफेद वस्त्र पर बनाये गये उस जन्मांग चक्र के उस भाव में रखेंगे जिसका आपको शोधन करना है । दीपक को रखने के लिए अक्षत और कुमकुम मिलाकर आसन बना दें ।


6, 8 या 12 वें भाव के शोधन के समय आप दीपक को अक्षत और काजल का आसन दें । 6, 8 या 12 वें भाव के शोधन के समय काले तिलों की ढेरी बनायें ।

जिस दीपक को सफेद वस्त्र पर बने हुये जन्मांग चक्र में रखना है, उसके दायें और बायें दोनों तरफ उस भाव का बीज मंत्र भी लिख देना है ।


पांचवें भाव में एक तरफ सं रहेगा और दूसरी तरफ जं बीज ।


दीपक में आड़ी बत्ती का प्रयोग करें । इस प्रकार से कि जब दीपक जले तब उसकी लौ आपकी तरफ रहे । ऐसा दोनों दीपक के लिए करना चाहिए ।


दोनों दीपक में एक जैसा तेल प्रयोग होगा ।


विधिः गणपति पूजन, गुरु पूजन और गुरु मंत्र की 5 माला जप कर लें । उसके बाद एक बार में ही 51 माला बीज युक्त मूल मंत्र की संपन्न करें ।


मंत्र जप के पश्चात कन्या पूजन अवश्य करें ।

 

विशेषः अगर आपके पास ताम्र पत्र पर अंकित यह यंत्र नहीं है तो आप इस यंत्र को किसी भोजपत्र पर बना लीजिए । साधारण प्राण प्रतिष्ठा कर लीजिए और साधना संपन्न कर लीजिए । इसका फल भी आपको वही मिलेगा जो ताम्र पर पर अंकित यंत्र से मिलेगा । अंतर सिर्फ इतना है कि ताम्र पत्र के यंत्रों की आयु भोजपत्र पर अंकित यंत्रों से अधिक होती है और इसका सीधा सा अर्थ है कि आप ताम्र पत्र पर अंकित यंत्र के सामने ज्यादा बार साधना संपन्न कर सकेंगे ।


आप सभी अपने - अपने जन्मांग चक्रों को शोधन कर सकें, जीवन की उलझी हुयी समस्याओं का समाधान कर सकें और जीवन को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों धरातलों पर ऊंचाइयां प्रदान कर सकें, ऐसी ही शुभेच्छा है ।


अस्तु ।


 

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Ashutosh rawat
Feb 28
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🙏🙏🙏

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